दुनिया के तानाशाहों शेख हसीना से कुछ तो सबक लो।

बीते महीने से बांग्लादेश में प्रोटेस्ट हो रहे थे, शेख हसीना की सरकार ने प्रोटेस्ट को कुछलने की कोशिश की,

सैकड़ों छात्रों को मार दिया गया और आज वो दिन आया है जब 

शेख हसीना ढाका छोड़कर भाग चुकी हैं और इस्तीफ़ा भी देकर गईं हैं।

शेख हसीना की सरकार तानाशाही सरकार थी यहां तक कि चुनाव में उनकी जीत भी तानाशाही तरीके से ही थी, अब बांग्लादेश में सैन्य शासन की शुरुआत होने वाली है।




शेख हसीना बांग्लादेश की सत्ता में सिंहासन से चिपक गईं थीं।

शेख हसीना 2009 से लगातार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं इस बीच उन्होंने देश में लोकतंत्र कहने मात्र को ज़िन्दा रखा।

शेख हसीना ने 

विपक्षी दलों के नेताओं को जेल में डलवा दिया
चुनाव आयोग के साथ धांधली से चुनाव जीता 

बांग्लादेश में हत्याएं और नरसंहार कराए 
प्रोटेस्ट को जबरदस्ती कुचलने की कोशिशें कीं 
कुर्सी किसी भी हाल में छोड़ने को तैयार नहीं हुई 

लेकिन आज उन्हें बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ा है। हर तानाशाह का दुखद अंत होता है यह बात हर तानाशाह को जाननी चाहिए।






टीवी चैनल वो दिखाते थे जो शेख हसीना कहती थीं। 
जज वो फैसला सुनाते थे जो शेख हसीना कहती थीं 

चुनाव आयोग वो नियम बनाता था जो शेख हसीना कहती थीं।
जांच एजेंसियां उसकी जांच करती थीं जो शेख हसीना कहती थीं।

यानि आप कह सकते हो कि बांग्लादेश में सब कुछ शेख हसीना के हाथों से ही कंट्रोल होता था लेकिन

हर तानशाही की एक सीमा होती है और आज वह सीमा समाप्त हो गई थी।





जो लोग कह रहे हैं कि बांग्लादेश से शेख हसीना का भागना लोकतंत्र की हत्या है वह लोग मेरे इन सवालों के जवाब दें

क्या लोकतंत्र में अपने ही प्रदर्शकारी छात्रों को आतंकवादी कहा जाता है? 

क्या लोकतंत्र में अपनी ही जनता पर बर्बरता से गोलियां बरसाईं जाती हैं? 

क्या लोकतंत्र में अपने ही नागरिकों पर हेलीकॉप्टर से मौत बरसाई जाती है? 

क्या लोकतंत्र में अपनी ही गलियों में प्रदर्शन को रोकने के लिए सेना को मौत का दूत बनाकर उतारा जाता है?

अगर यह सब लोकतंत्र में नहीं होता है तो फिर शेख हसीना की सरकार किसी भी तौर पर लोकतांत्रिक नहीं थी।